HomeSEWA Bharatसमानता: लड़कों तथा लड़कियों में समानता

समानता: लड़कों तथा लड़कियों में समानता

मेरा नाम शबिस्ता है| मैं दिल्ली के राजीव नगर में रहती हूँ| दिल्ली भारत की राजधानी है, एवं देश के उत्तर में स्थित है|

मैं विश्व-प्रसिद्ध दिल्ली विश्वविद्यालय में स्नातक की छात्रा हूँ| मैंने स्नातक के पहले साल की परीक्षा दी है|

सर्वप्रथम मैं अपने विषय का संक्षिप्त अवलोकन देना चाहूंगी|

मेरा सोचना है की लड़की तथा लड़के को एक समान समझा जाना चाहिए|

दोनों को बराबर का दर्जा मिलना चाहिए| दोनों में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए|

अगर हम प्राचीन काल की बात करें तो उस समय तो लड़को और लड़कियों में बहुत भेदभाव होता था| लोगों की सोच थी के एक पुत्र अवश्य होना चाहिए| उनका मानना होता था की पुत्र हमारे खानदान को आगे बढ़ाएगा| यह भी माना जाता था के बेटा हमारा अंतिम संस्कार करेगा| लेकिन हमारा तर्क यह है की इस प्रकार की सोच गलत थी|

अब सब समझते हैं की केवल लड़का होने से ही अंतिम संस्कार नहीं होगा|

मेरे इस लेख की महत्वपूर्ण बात है- मेरे पड़ोस की कहानी| हमारे पड़ोस में एक परिवार था, जिसमे चार सदस्य थे- माता, पिता, बेटा और बेटी| बेटे को दिल्ली के बाहर नौकरी मिल गयी, जिस वजह से वह दिल्ली में ही रहता था| उसी बीच उसके माता-पिता का देहांत हो गया| बेटा किसी कारणवश घर न आ सका, तो बेटी ने ही अंतिम संस्कार किया|

अब मैं एक और बात पर रौशनी डालना चाहूंगी| पहले की ये सोच गलत थी जहाँ बेटियों को बोझ समझा जाता था| उनके जन्म के समय ही उनकी शादी की जिम्मेदारियों के बारे में सोचा जाने लगता था|दूसरी तरफ, आज के समय में लड़कियाँ भी लडको की बराबरी करने लगी है| उनके समानअपना परिवार चलाने की क्षमता रखती हैं|

पहले लोगों की सोच थी के अगर लड़का पैदा हिगा तो उनके खानदान को आगे बढ़ाएगा, जबकि दूसरी और लड़की नाक कटवा देगी| माँ को हज़ार ताने सुनने पड़ते थे|

आज के समय में पहले से बहुत बदलाव आया है| अगर कहा जाये के लड़का नाम रोशन करेगा तो लड़कियां भी किसी से कम नहीं| आज लडकिया लडको के समान ही काम कर रही हैं|

यदि बात की जाए लड़कियों की शिक्षा की, तो पहले लड़कियां अशिक्षित हुआ करती थी, सिर्फ घर के कार्य करती थी| अगर कोई लड़की पढना चाहती थी तो सवाल रहता था की लड़की पढ़कर क्या करेगी? स्कूल की पढाई यदि करने दी जाती थी, तब भी कॉलेज की शिक्षा उन्हें नसीब नै होती थी|दूसरी ओर लडको को खूब पढ़ाया जाता थ| लड़कियों को शिक्षा न देने के कारण भी अनुचित होते थे- लड़की ने आखिर में शादी ही तो करनी है, लड़का लड़की से ज्यादा पढ़ा-लिखा ढूँढना पड़ेगा|

शायद लड़की को इसलिए भी नहीं पढ़ाते थे की अगर लड़की पढ़ लिख गयी तो वह अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो जाएगी, समाज की असमानता एवं विषमता के खिलाफ आवाज उठाएगी|

आज काफी हद तक सुधार आया है, लड़कियां अधिक संख्या में शिक्षित हो रही हैं| सोच में काफी बदलाव आया है| पहले सिर्फ दसवी पास करने वाली लड़कियां अब स्नातकोत्तर तक पढ़ती हैं, तथा और भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही हैं| आज की नारी किसी से कम नहीं है|

आज भारत में लड़का एवं लड़की में कोई भेदभाव नहीं किया जाता, दोनों को बराबर का दर्जा दिया जाता है|

पहले बहु के गर्भ में लड़की होने का ज्ञात होने पर भूड हत्या कर दी जाती थी| आज ऐसा नहीं है क्युकी ऐसे कार्य के लिए सरकार दंड देती है| ऐसा करने वाले चिकित्सक को भी दंड मिलता है|

भारत के एक राज्य राजस्थान में एक क्षेत्र है- पिम्प्लात्री| वहां एक बेटी के पैदा होने पर दो पेड़ लगाये जाते हैं| यही तो प्रगतिशील सोच है| लड़कियां प्रति वर्ष वृक्षों को ही राखी भी बांधती हैं|

इस में न सिर्फ बराबरी का बल्कि पर्यावरण सुरक्षा का भी पाठ है|

पहले लड़कियों को घर से बहार तक नहीं निकला जाने दिया जाता था| घर से बाहर कदम रखने पर भी दस सवाल और ज़रा सी देरी पर और सवालों का सामना करना पड़ता था| आज भारत की लड़कियां अपने फैसले स्वयं कर रही हैं|

कुछ साल पहले तक तो किसी ने सोचा भी नहीं था की महिलाएं दिल्ली की सडकों पर उतर आयेंगी, और आज तो वह बसें भी चला रहीं हैं| महिलाएं हर क्षेत्र में नज़र आ रहीं हैं|

आज प्रेरणा-स्त्रोत भी कम नहीं- चाहे वो इंदिरा गाँधी, भारत की प्रथम महिला प्रधान-मंत्री हों, अथवा श्रीमती प्रतिभा पाटिल, भारत की पहली राष्ट्रपति|

अब अगर बात करें लड़कियों के कपड़ों की- तो पहले उसमे भी असमानता थी| आज के समय में यह नहीं पुचा जाता के लड़कियों के कपड़ो में पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव है|

आज की नारी स्वतंत्र नारी है|

निष्कर्ष: अंततः मैं यह लिखना चाहूंगी की समानता बहुत ही महत्वपूर्ण है|इस समानता के बल पर ही हमे न्याय मिल सकता है|

  • शबिस्ता

सेवा यूथ कनेक्ट मेंटी

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